प्रस्तावना
दोस्तो , हकलाहट की समस्या के बारे में आप जरूर जानते होगें और जो नहीं जानते , उनकी जानकारी के लिए मैं बता दूं की हकलाहट की समस्या एक ऐसी समस्या है जिसमें व्यक्ति रुक – रुक कर यां यूं कह लो की अटक – अटक कर बोलता है । ऐसे में क्या हो अगर इस समस्या से परेशान व्यक्ति को नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू देने जाना हो । वह कैसे इस नौकरी के लिए इंटरव्यू देने में समर्थ हो जाता है ।
कहानी
एक दिन की बात है । मैं अपनी दूकान में बैठा था कि अचानक एक अनजाने नम्बर से एक फ़ोन आया । मैंने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ़ से एक लड़के की आवाज़ थी । जिसकी उम्र अंदाज़न बीस – बाईस वर्ष के आसपास होगी । अपने बारे में बताने के बाद उसने अपनी समस्या के बारे में बाताया । उसकी समस्या हकलाहट से सम्बंधित थी । परन्तु जैसा की उसने बताया की उसे हकलाहट की समस्या अक्सर नहीं होती सिर्फ़ कुछ विशेष परिस्थितियों में ही उसे हकलाहट की समस्या का सामना करना पड़ता था । मुझे समझने में देर ना लगी की उसे यह समस्या किसी अन्य की हकलाहट की नक़ल करने के कारण पैदा हुई है । परन्तु मैंने उसे इसके बारे में नहीं बताया ।
ख़ैर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा की उसे लगता है कि उसे हकलाहट से सम्बन्धित ऐसी कोई भी समस्या नहीं है । परन्तु कई बार उसे कुछ ख़ास परिस्थितियों में हकलाहट का सामना करना पड़ता है । जिसके लिए वह तैयार नहीं होता । उसने बताया की उसका नाम मिथिलेश यादव है और वह बिहार का रहने वाला है । उम्र छबीस साल और अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर वह नौकरी ढूँढ रहा है ।
मिथिलेश ने बताया की आजकल उसकी समस्या यह की जब वह नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने जाता है तो वह उन सबके सामने हकलाने लगता है । जिस वजह से उसे नौकरी मिलने से पहले ही नौकरी से हाथ धोना पड़ता है । उसने बताया की उसे बिलकुल भी समझ नहीं आ रही कि उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि वह अक्सर हकलाता नहीं है । वह सबके सामने बिना किसी रूकावट के आसानी से बातचीत करता है । परन्तु वह
इंटरव्यू के समय ही क्यों हकलाने लगता है । मैंने उसे ढाढ़स बँधाया और उसको इंटरव्यू देने से पहले और बाद कि सारी बात बताने को कहा ।
उसने बताया की अभी तीन दिन पहले की बात है । वह नोएडा की एक मल्टीनेशनल कम्पनी में इंटरव्यू देने गया । वह इंटरव्यू देने से पहले बाकि प्रतियोगियों के साथ क़तार में बैठकर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था । जैसे – जैसे उसकी बारी नज़दीक़ आ रही थी वैसे – वैसे ही उसे कुछ घबराहट महसूस हो रही थी । जैसे ही उसका नम्बर आया और उसने जहाँ इंटरव्यू ली जा रही थी उस कमरे का दरवाज़ा खोला तो उसे अंदर बैठे लोग जो इंटरव्यू ले रहे थे उनसे अंदर आने की इजाज़त माँगनी थी । परन्तु उसके मुँह से आवाज़ ही नहीं निकल रही थी । ख़ैर जैसे तैसे वह इशारा करके अंदर तो आ गया परन्तु साथ ही उसे उन सबके सामने किये इस अजीब बर्ताव का डर सताने लगा । वह पसीने से भीगने लगा । उसके चेहरे से घबराहट के चिन्ह साफ़ – साफ़ नज़र आने लगे । उसकी इंटरव्यू शुरू करते हुए सामने बैठे लोगों ने उसका नाम पूछा तो उससे उसका नाम बोला नहीं गया । वह एकदम चुप बैठा हुआ था । और साथ ही अपना नाम बोलने की कोशिश कर रहा था वह डर के मारे काँपने लगा था । उसके होंठ डर के मारे थरथराने लगे थे । उसकी ऐसी स्थिती देख वहाँ बैठे लोगों ने उसे इंटरव्यू ख़त्म और धन्यवाद बोलकर उसे बाहर जाने के लिए बोल दिया ।
इतनी बात बोलकर मिथिलेश चुप हो गया । कुछ देर ख़ामोश रहने के पश्चात् मैंने उससे बात की । उसने उदासी भरे लहजे से बताया की अगले सप्ताह को उसने फिर से इंटरव्यू के लिए जाना है और अगर इस बार उससे कुछ नहीं बोला गया तो उसके लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि उस इंटरव्यू में उसका सारा भविष्य निर्धारित होगा ।
मैंने उससे उसकी पिछली ज़िन्दगी की कुछ जानकारी ली जिससे मुझे ज्ञात हो गया कि उसे जन्म हकलाहट जैसी कोई समस्या नहीं है । उसने साफ़ साफ़ बता दिया की उसने बचपन में अपने एक मित्र जो की हकलाहट की समस्या से पीड़ित था उसकी नक़ल की थी और उसके यानि मिथिलेश के घरवाले यह मानते हैं कि यह उसके उसी दोस्त का श्राप की वजह से है ।
उसकी सारी बात सुनने के पश्चात् माने उसे बोला कि श्राप वग़ैरह कुछ नहीं होता हाँ यह बात सच ज़रूर है कि तुम्हारी यह स्थिती तुम्हारे बचपन के दोस्त की वजह से है । यानि तुम्हारी हकलाहट की समस्या जो तुमने अपने बचपन के दोस्त के हकलेपन की नक़ल की थी यह उसी नक़ल उतारने का नतीजा है । परन्तु अब इसके बारे में सोचना बेकार है । तुम अपने भविष्य पर ध्यान केन्द्रित करो । जैसा कि तुमने बोला है की एक सप्ताह के बाद तुम्हारी फिर से इंटरव्यू है । तुम्हारी यह इंटरव्यू में सफल रहे इसके लिए तुम्हें कुछ काम करना होगा ।
वह कहते हैं ना “मरता क्या न करता” । मिथिलेश ने कहा की वह मेरी हर एक बात को मानने के लिए तैयार है । बस उसको इस बार की इंटरव्यू में सफलता मिलनी चाहिए । तभी मैंने उसे कहा की यह सब हो जाएगा तुम चिंता मत करो । बस तुम वैसा ही करो जैसा मैं कहता हूँ । तब मैंने मिथिलेश को कहा की पहले तो वह सुबह – सुबह जल्दी उठकर सैर किया करे और साथ में गले और साँस से सम्बंधित व्यायाम किया करे । इससे उसका दिन भी अच्छा रहेगा और हकलाहट से सम्बंधित उसकी समस्या भी ठीक हो जाएगी ।
और जब वह इंटरव्यू देने के जाना हो तो वह बिना किसी डर के बेख़ौफ़ होकर जाए । और इंटरव्यू के समय एक काम अवश्य करे । जब वह इंटरव्यू देने के लिए क़तार में बैठा हो उस समय वह अपना एक पसंदीदा चाॅकलेट खाए ओर जैसे ही उसकी बारी आए और वह इंटरव्यू देने के लिए कमरे के दरवाज़े कि ओर अपना हाथ बढ़ाए । तभी अपने दिल के साथ एक वादा करें और मन ही मन में उसे कहे की अगर उसने आज का इंटरव्यू सही ढंग और बिना किसी समस्या के दे दिया तो वह उसे यानि अपने आपको अपनी किसी पसंदीदा जगह पर पार्टी देगा और जो उसे खाने में सबसे अच्छा लगता है वह खाएगा ।
यह सब सुनकर मिथिलेश हँसने लगा और मुझसे पूछने लगा की यह सब कैसे काम करेगा । इसके जवाब में मैंने उसे कहा कि हो सकता है कि तुम्हें मेरी यह सब बातें हास्यपद लगे परन्तु हकलाहट को क़ाबू पाने कि मेरी यह तरीक़ा सौ फ़ीसदी सही साबित हुआ है और मैं अक्सर अपने साथ इस तरीक़ा आज़माता रहता हूँ । तुम एक बार इस तरीक़े को एक बार अाज़मा कर देखो । मिथिलेश ने ऐसा ही करने का वादा करके फ़ोन बंद कर दिया ।
आप सभी को उपरोक्त तरीक़ा शायद बे-मतलब और अजीब लगे परन्तु मेरा असल मक़सद मिथिलेश के दिमाग़ को कन्फ़्यूज़ करना था । यानि के उसके ध्यान कहीं और लगवाकर उसके हकलाहट के डर को कुछ देर के लिए ख़त्म करना था । और हुआ भी कुछ ऐसा ही । कुछ दिनों के बाद मिथिलेश का फिर से फ़ोन आया । इस बार वह पहले से ज़्यादा ख़ुश और बेहतर ढंग से बात कर रहा था । उसने बताया की उसकी इंटरव्यू ठीक ठाक हो गई है । और उसे नौकरी भी मिल गई है । मैंने उसे बधाई दी और इंटरव्यू का पूरा वाक्या बताने को कहा ।
मिथिलेश ने बताया की मेरे कहे अनुसार पहले तो वह सुबह सैर करता रहा । फिर जब इंटरव्यू का दिन आया तो सुबह उठकर नहा धोकर तैयार होकर इंटरव्यू के लिए निकल पड़ा । मिथिलेश ने कहा ” रास्ते में से मैंने एक चाॅकलेट बार ख़रीद ली । मैं ठीक समय पर आफिस पहुँच गया था और इंटरव्यू के लिए बाक़ी प्रतियोगियों के साथ क़तार में बैठ गया । अपनी बारी का इंतज़ार करके हुए मैं साथ – साथ चाॅकलेट खाने लगा । जब मेरा नम्बर आया और मैं कमरे की तरफ़ जहाँ इंटरव्यू ली जा रही थी । वहाँ जाने लगा तभी उसी समय मैंने अपने आपसे एक वादा किया और मन ही मन में कहा की अगर आज की इंटरव्यू सही ढंग से और बिना किसी परेशानी के हो गया तो साथ वाले के.एफ.सी रेस्टोरेंट में अपने आपको पार्टी देगा । ”
मैंने उसकी बात काटते हुए पूछा कि के.एफ.सी रेस्टोरेंट ही क्यों ? इसके जवाब में उसने बताया की उसे के.एफ.सी रेस्टोरेंट काफ़ी पसंद है और जब कभी वह उदास होता है तो इस रेस्टोरेंट में आकर बैठ जाता है और कुछ ना कुछ खाने लगता है । उसमें बताया की यहाँ आकर उसे काफ़ी सुकून मिलता है ।
बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा ” इंटरव्यू देने के लिए जब मैं बैठा तो पहले तो थोड़ा डर लगा परन्तु बाद में सब सामान्य हो गया । फिर वहाँ बैठे सज्जन ने मुझसे कुछ प्रश्न किए । जिनके जवाब मैंने तुरंत दे दिए । और आख़िरकार मेरी क़ाबिलियत और मेरे मिलनसार स्वभाव की बदौलत उन्होंने मुझे नौकरी दे दी गई । परन्तु मुझे यह बात कुछ समझ में नहीं आई की आख़िरकार यह सब हुआ कैसे । क्या यह कोई चमत्कार है । ”
उसकी बात सुनकर मैं हँसने लगा । मैंने उसे कुछ नहीं बताया की आख़िरकार मेरे इस तरीक़े ने काम कैसे किया । इस बात को हुए लगभग दो साल से ऊपर का समय हो गया है और आज तक मैंने इस राज़ का ख़ुलासा कभी नहीं किया । परन्तु आज मैं अपनी वेबसाईट के माध्यम से इस राज से पर्दा उठाने की कोशिश करूँगा ।
मिथिलेश की हकलाहट की समस्या बचपन में उसके दोस्त की हकलाहट की नक़ल करने के कारण पैदा हुई थी । चूकीं जैसे इस प्रकार से पैदा हुई समस्या में होता है । यह समस्या हर समय नहीं होती । यह सिर्फ़ कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होने लगती है । इस समस्या से जूझ रहा व्यक्ति डर और कन्फ़्यूज़न की मिली जुली स्थिती में होता है । शुरूआती चरण में व्यक्ति को अपनी इस समस्या के बारे में पता ही नहीं चलता । जिस वजह से मिथिलेश अपनी इस समस्या से परिचित नहीं था ।
यही वजह है की जब मिथिलेश पहली बार इंटरव्यू देने गया तो वह बोलते समय रूक गया । उसके मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी । जिस वजह से वह भ्रम यानि कन्फ़्यूज़न की स्थिती में पड़ गया । जिससे उसका दिमाग़ सब कुछ भूलकर नई पैदा हुई परिस्थिती यानी हकलाहट की समस्या को ठीक करने में लग गया । कुछ ना बोलने या यूँ कह लें की इंटरव्यू में पूछे गये सवालों का जवाब ना दे पाने के कारण वह उसमें फ़ेल हो जाता है । फ़ेल हो जाने की निराशा मिथिलेश की हकलाहट की समस्या को और भी बढ़ा देती है ।
अब सवाल यह है की इस बार उसने इंटरव्यू कैसे पास कर ली । क्या मैंने कोई चमत्कारी टोटका उसे बताया था । जी नहीं । सबसे पहले मैंने मिथिलेश को सुबह सैर करने के लिए कहा । ताकी वह कुछ शांत रह सके और डर और कन्फ़्यूज़न की स्थिती ना पैदा हो सके । फिर मैंने उसे चाॅकलेट खाने की सलाह दी । वो भी तब जब वो इंटरव्यू के दौरान अपनी बारी का इंतज़ार कर रह हो । क्योंकि एक हकलाहट की समस्या से पीड़ित व्यक्ति के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करने का समय वह समय होता है जब उसमें हकलाहट का होना लगभग तय माना जाता है । यानि उसे एक बात का संशय ज़रूर होता है की उसे अपनी बारी में हकलाहट की स्थिती का सामना ज़रूर करना पड़ेगा ।
वह डर , कन्फ़्यूज़न और निराशा की मिलाजुली स्थिती में होता है । चाॅकलेट खाने से उसका ध्यान इन सब बातों की तरफ़ कम जाता है । और इंतज़ार का वह समय आसानी से निकल जाता है । इसके बाद वह इंटरव्यू देने के लिए कमरे के अंदर जाने लगता है । ठीक उसी समय डर की वजह से उसका दिल के धड़कने की गति तेज़ हो जाती है । परन्तु इस दौर के दौरान वह अपने आपसे यह वादा कर देता है की अगर अंदर सब ठीक ठाक रहा तो वह अपने आपको अपनी पसंदीदा जगह में पार्टी देगा ।
यह सब बातें मिलकर उसके दिल और दिमाग़ में पैदा हो रही डर और कन्फ़्यूज़न की स्थिती को लगभग ख़त्म कर देती है । जब मिथिलेश इंटरव्यू दे रहा होता हाँ तो उसका चेतन मन जागरूक हो जाता है और साथ ही उसका अवचेतन मन जो की उसकी हकलाहट की समस्या के लिए ज़िम्मेदार होता वह उस के.एफ.सी रेस्टोरेंट के बारे सोचने में व्यस्त हो जाता है की वह रेस्टोरेंट कौन से रास्ते से जाएगा और वहाँ जाकर क्या क्या खाएगा । और इस प्रकार वह अपनी इंटरव्यू देने में कामयाब हो जाता है ।
इस पूरे घटनाक्रम से यह ज्ञात हो जाता है की हकलाहट की समस्या कोई बीमारी नहीं है और ना ही कोई मानसिक रोग है । सिर्फ़ अपने दिल को थोड़ा बहला कर और दिमाग़ को कहीं और लगा हकलाहट की समस्या को कुछ देर तक क़ाबू किया जा सकता है । मिथिलेश ने उपरोक्त तरीक़े के बारे में मुझसे कई बार पूछा की इसने कैसे काम किया परन्तु मैंने उसे कभी नहीं बताया क्योंकि अगर मैं इस बात का ख़ुलासा पहले कर देता तो शायद मैं और मिथिलेश दोनों अपने मक़सद में कामयाब ना होते ।